पिता के हाथ
किसी भी ठेस से
अहं जब आहत हो जाता था
और बचपन जब रोने लगता था
तो श्रम से पुष्ट
तुम्हारे खुरदरे हाथ
मेरे आंसू पोंछते हुए मुझे
कल्पना का साम्राज्य
सौंप देते थे
और "राजा बेटा" बना मैं
जो भी तुतले
और अर्थहीन शब्द कहता था
उन पर सपनों का
ताना-बाना बुनकर
तुम अपना दिल बहला लेते थे
आज!
उम्र की सड़क के
वर्षों लम्बे मील तय करके भी
कहाँ पा सका हूँ
उन खुरदरे हाथों-सा
प्यार और दुलार
कोहनियों तक जुड़े हाथ
फर्शी सलाम
या सजदे में झुके मस्तक
खूब मिलते हैं।
किन्तु इन सब के पीछे
सिर्फ स्वार्थ के फूल खिलते हैं!
कितनी घाटियाँ, मरुथल
और शिखरों को
पार करते हुए
यहाँ तक आया हूँ!
किन्तु अपनत्व भरे
उन खुरदरे हाथों का स्पर्श
कब भुला पाया हूँ!
संस्थान परिचय
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*गठन :-*
प्रयास संस्थान, चूरू (राजस्थान) का गठन सामाजिक सरोकारों को लेकर एक
स्वयंसेवी संगठन के रूप में २४ फरवरी, २००४ को हुआ।
संस्थान का विध...
3 weeks ago
bahut sunder rachna h sir.badhai...
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ पढी,अच्छी लगी।
ReplyDeleteअपनी अन्य रचनाएँ भी यहाँ प्रस्तुत करेँ ताकि बाकी पाठकोँ तक पहुँच सके।
धन्यवाद.
www.yuvaam.blogspot.com