छाया का विरोध पत्र
मैं पेड़ पर गीत लिखूंगा
जो तेज हवाओं में
तनकर खड़ा हो सके
भयंकर आंधी
तूफान
और बारिश का
अपनी मजबूत और गहरी
जड़ों के बलबूते पर
सामना कर सके
जो अपने संघर्षशील
और जुझारू व्यक्तित्व द्वारा
वातावरण में संगीत भर सके
लूओं के थपेड़े खाकर भी
जो प्राण-वायु बांटता है
तथा सूरज से बगावत करके
जिसका पत्ता-पत्ता
छाया का
विरोध-पत्र लिखता है
ठीक उसी प्रकार
मेरी शब्द रचना भी
धरती से रस खींचेगी
और उसकी लय
पत्ते-पत्ते को
रस से सींचेगी!
मोहन आलोक - एक दिव्य काव्य-पुरुष/ डॉ. नीरज दइया
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मोहन आलोक को इस संसार से गए दो साल से अधिक समय हो गया है किंतु अब भी
उनके जाने का दुख मुझ में इस तरह समाया है कि उन्हें याद करते हुए मैं विचलित
हो जा...
1 year ago
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