Friday, April 9, 2010

टाइप - रामधन "अनुज"

चौराहा

यहाँ आकर आदमी

एक बार रुक जाता है

यह सोचने के लिए

कि वह पीछे मुड़े

या आगे चलता जाये

निर्णय के क्षणों में इतिहास

और भविष्य की तस्वीर

एक दम उसकी आँखों के सामने

घूम जाती है!

यहाँ खड़े होकर लोग

कई महतवपूर्ण मुद्दों पर

बहस करते हैं

मसलन मंहगाई

राजनीती या बढती जनसंख्या पर

और अपने-अपने निर्णय

पीक की भांति

थूक कर चले जाते हैं!

अभी-अभी एक जुलूस गुजरा है

अपने दर्प से

तमाम शोर को कुचलते हुए

प्रदुषण को खत्म करना

उनकी मांग थी

भीड़ को नियंत्रित करने

अश्रु गैस छड़ी गई

लाठी चार्ज किया गया ;

शांति स्थापना के लिए

सात को हिरासत में लिया गया!

बंद हैं तमाम रस्ते

आदमी से आदमी तक जाने के

पुलिस गश्त जरी है

हर चौराहे पर

बख्तरबंद गाड़ी खड़ी है

सब ओर नीरवता है

सिर्फ एक अधफटा पोस्टर

हवा में फडफदा रहा है

जिस पर लिखा है

"दिल्ली चलो!"

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