Thursday, April 1, 2010

टाइप - रामधन "अनुज"

इस मौसम में

सब कुछ
इसी मौसम में हो जाएगा!
हमारे देखते-देखते
कुछ लोग
कबूतरों को चुग्गा डालने आएंगे,
शान्ति, समझौतों की बातें करते हुए
उनका एक हाथ
जेब में रखे चाकू पर होगा
और उनका सिर्फ इशारा भर होगा
कि उनके प्रशिक्षित बाज
हम पर झपट पड़ेंगे!
कपड़ो की तरह बदलते हुए
हवा का रुख
जब वे अपनी और
कर लेंगे,
तो हमारी यादाशत खो जाएगी!
अपना काम निकालना
उन्हें आता है
तजुर्बेकार हैं
जब जरुरत होगी
उनकी अंगुली
अपने आप टेढ़ी हो जाएगी!
इस मौसम में
जब वे परिवर्तन का नारा उछालते हैं
हमें जान लेना चाहिए
कि वे अपनी सुरक्षा का घेरा
और मजबूत कर रहे हैं!
तथा भीतर ही भीतर
किसी अनचाही स्थिति से
दर रहे हैं

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